वैजयंती: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी की तैतीसवीं नगरी । यहाँ का राजा बलसिंह था । <span class="GRef"> महापुराण 19.50, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 30.33 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी की तैतीसवीं नगरी । यहाँ का राजा बलसिंह था । <span class="GRef"> महापुराण 19.50, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_30#33|हरिवंशपुराण - 30.33]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) समवसरण के सप्तपर्ण वन की छ: वापियों में एक वापी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57. 33 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) समवसरण के सप्तपर्ण वन की छ: वापियों में एक वापी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_57#33|हरिवंशपुराण - 57.33]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) पश्चिमविदेहक्षेत्र में सुवप्रा देश की राजधानी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5. 251, 263 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) पश्चिमविदेहक्षेत्र में सुवप्रा देश की राजधानी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#251|हरिवंशपुराण - 5.251]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#263|हरिवंशपुराण - 5.263]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) एक शिविका-पालकी । तीर्थंकर अरनाथ इसी में बैठकर वन (सहेतुक वन) गये थे । <span class="GRef"> महापुराण 65.33, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.26 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) एक शिविका-पालकी । तीर्थंकर अरनाथ इसी में बैठकर वन (सहेतुक वन) गये थे । <span class="GRef"> महापुराण 65.33, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.26 </span></p> | ||
<p id="5">(5) राम का एक सभा-भवन । <span class="GRef"> पद्मपुराण 83.5 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) राम का एक सभा-भवन । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_83#5|पद्मपुराण - 83.5]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) भरतक्षेत्र में चक्रपुर-नगर के राजा वरसेन की रानी । यह सातवें बलभद्र-नंदिषेण की जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 65. 173-177, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20.238-239 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) भरतक्षेत्र में चक्रपुर-नगर के राजा वरसेन की रानी । यह सातवें बलभद्र-नंदिषेण की जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 65. 173-177, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#238|पद्मपुराण - 20.238-239]] </span></p> | ||
<p id="7">(7) नंदीश्वर-द्वीप की दक्षिण-दिशा के अन्जनगिरि की दक्षिण-दिशा में स्थित वापी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.660 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) नंदीश्वर-द्वीप की दक्षिण-दिशा के अन्जनगिरि की दक्षिण-दिशा में स्थित वापी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#660|हरिवंशपुराण - 5.660]] </span></p> | ||
<p id="8">(8) रूचकगिरि के कांचनकूट पर रहने वाली दिक्कुमारीदेवी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.705 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) रूचकगिरि के कांचनकूट पर रहने वाली दिक्कुमारीदेवी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#705|हरिवंशपुराण - 5.705]] </span></p> | ||
<p id="9">(9) रूचकगिरि के रत्नप्रभकूट पर रहने वाली एक देवी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.725 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) रूचकगिरि के रत्नप्रभकूट पर रहने वाली एक देवी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#725|हरिवंशपुराण - 5.725]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- अपर विदेह के सुप्रभ क्षेत्र की प्रधान नगरी।–देखें लोक - 5.2।
- नंदीश्वर द्वीप की पश्चिम दिशा में स्थित एक वापी–देखें लोक - 5.11।
- रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी देवी व महत्तरिका–देखें लोक - 5.13।
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी की तैतीसवीं नगरी । यहाँ का राजा बलसिंह था । महापुराण 19.50, हरिवंशपुराण - 30.33
(2) समवसरण के सप्तपर्ण वन की छ: वापियों में एक वापी । हरिवंशपुराण - 57.33
(3) पश्चिमविदेहक्षेत्र में सुवप्रा देश की राजधानी । हरिवंशपुराण - 5.251,हरिवंशपुराण - 5.263
(4) एक शिविका-पालकी । तीर्थंकर अरनाथ इसी में बैठकर वन (सहेतुक वन) गये थे । महापुराण 65.33, पांडवपुराण 7.26
(5) राम का एक सभा-भवन । पद्मपुराण - 83.5
(6) भरतक्षेत्र में चक्रपुर-नगर के राजा वरसेन की रानी । यह सातवें बलभद्र-नंदिषेण की जननी थी । महापुराण 65. 173-177, पद्मपुराण - 20.238-239
(7) नंदीश्वर-द्वीप की दक्षिण-दिशा के अन्जनगिरि की दक्षिण-दिशा में स्थित वापी । हरिवंशपुराण - 5.660
(8) रूचकगिरि के कांचनकूट पर रहने वाली दिक्कुमारीदेवी । हरिवंशपुराण - 5.705
(9) रूचकगिरि के रत्नप्रभकूट पर रहने वाली एक देवी । हरिवंशपुराण - 5.725