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<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3.1 | इंद्रियमार्गणा | <li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3.2 | कायमार्गणा ]]</li> | ||
<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3.2 | कायमार्गणा | <li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.3| योगमार्गणा ]]</li> | ||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.3| योगमार्गणा | <li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3.4 | वेद मार्गणा]] </li> | ||
<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3.4 | वेद मार्गणा | <li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.5 | ज्ञानमार्गणा]] </li> | ||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.5 | ज्ञानमार्गणा | <li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.6 | संयम मार्गणा]] </li> | ||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.6 | संयम मार्गणा | <li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.7 | सम्यक्त्व मार्गणा]] </li> | ||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.7 | सम्यक्त्व मार्गणा | <li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.8 | आहारक मार्गणा]] </li> | ||
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<li class="HindiText"> एकेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान—देखें [[ स्थावर ]]।<br /> | <li class="HindiText"> एकेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान—देखें [[ स्थावर ]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> विकलेंद्रिय व पंचेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें [[ तिर्यंच#3 | तिर्यंच - 3]]। | <li class="HindiText"> विकलेंद्रिय व पंचेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें [[ तिर्यंच#3 | तिर्यंच - 3]]। | ||
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<li class="HindiText"> तेज व अप्कायिक जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें [[ काय#2.5 | काय - 2.5 ]] | <li class="HindiText"> तेज व अप्कायिक जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें [[ काय#2.5 | काय - 2.5 ]] | ||
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<li class="HindiText"> त्रस, स्थावर, सूक्ष्म, बादर, जीवों का लोक में अवस्थान–देखें [[ वह वह नाम ]]। | <li class="HindiText"> त्रस, स्थावर, सूक्ष्म, बादर, जीवों का लोक में अवस्थान–देखें [[ वह वह नाम ]]। | ||
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<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.4 | मारणांतिक समुद्घात के क्षेत्र संबंधी दृष्टिभेद।]] | <li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.4 | मारणांतिक समुद्घात के क्षेत्र संबंधी दृष्टिभेद।]] | ||
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<li class="HindiText">[[ क्षेत्र_-_गति#4 -3 | जीवों के क्षेत्र की आदेश प्ररूपणा। ]]<br /> | <li class="HindiText">[[ क्षेत्र_-_गति#4 -3 | जीवों के क्षेत्र की आदेश प्ररूपणा। ]]<br /> | ||
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Latest revision as of 17:04, 16 April 2023
- भेद व लक्षण
- क्षेत्र सामान्य का लक्षण।
- क्षेत्रानुगम का लक्षण।
- क्षेत्र जीव के अर्थ में।
- क्षेत्र के भेद (सामान्य विशेष)।
- लोक की अपेक्षा क्षेत्र के भेद।
- क्षेत्र के भेद स्वस्थानादि।
- निक्षेपों की अपेक्षा क्षेत्र के भेद।
- स्वपर क्षेत्र के लक्षण।
- सामान्य विशेष क्षेत्र के लक्षण।
- क्षेत्र लोक व नोक्षेत्र के लक्षण।
- स्वस्थनादि क्षेत्रपदों के लक्षण।
- समुद्घातों में क्षेत्र विस्तार संबंधी—देखें वह वह नाम ।
- निक्षेपोंरूप क्षेत्र के लक्षण।–देखें निक्षेप ।
- क्षेत्र सामान्य का लक्षण।
- क्षेत्र सामान्य निर्देश
- क्षेत्र प्ररूपणा विषयक कुछ नियम
- नरक, तिर्यंच, मनुष्य, भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष, वैमानिक, व लौकांतिक देवों का लोक में अवस्थान।–देखें वह वह नाम ।
- जलचर जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें तिर्यंच - 3।
- भोग व कर्मभूमि में जीवों का अवस्थान—देखें भूमि - 8।
- मुक्त जीवों का लोक में अवस्थान—देखें मोक्ष - 5।
- एकेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान—देखें स्थावर ।
- विकलेंद्रिय व पंचेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें तिर्यंच - 3।
- तेज व अप्कायिक जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें काय - 2.5
- त्रस, स्थावर, सूक्ष्म, बादर, जीवों का लोक में अवस्थान–देखें वह वह नाम ।
- नरक, तिर्यंच, मनुष्य, भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष, वैमानिक, व लौकांतिक देवों का लोक में अवस्थान।–देखें वह वह नाम ।
- क्षेत्र प्ररूपणाएँ
- अन्य प्ररूपणाएँ
- अष्टकर्म के चतु:बंध की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- अष्टकर्म सत्त्व के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- मोहनीय के सत्त्व के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- पाँचों शरीरों के योग्य स्कंधों की संघातन परिशातन कृति के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- पाँच शरीरों में 2, 3, 4 आदि भंगों के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- 23 प्रकार की वर्गणाओं की जघन्य, उत्कृष्ट क्षेत्र प्ररूपणा।
- प्रयोग समवदान, अध:, तप, ईयापथ व कृतिकर्म इन षट् कर्मों के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- अष्टकर्म के चतु:बंध की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।