ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 121 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
आदा कम्ममलिमसो परिणामं लहदि कम्मसंजुत्तं । (121)
तत्तो सिलिसदि कम्मं तम्हा कम्मं तु परिणामो ॥131॥
अर्थ:
कर्म से मलिन आत्मा कर्म संयुक्त परिणाम को प्राप्त करता है, उससे कर्म का बन्ध होता है; इसलिये ये परिणाम ही कर्म हैं ।
तात्पर्य-वृत्ति:
अथ संसारस्य कारणं ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म तस्य तु कारणंमिथ्यात्वरागादिपरिणाम इत्यावेदयति --
आदा निर्दोषिपरमात्मा निश्चयेन शुद्धबुद्धैकस्वभावोऽपिव्यवहारेणानादिकर्मबन्धवशात् कम्ममलिमसो कर्ममलीमसो भवति । तथाभवन्सन् किं करोति । परिणामं लहदि परिणामं लभते । कथंभूतम् कथंभूतम् । कम्मसंजुत्तं कर्मरहितपरमात्मनो विसद्रशकर्मसंयुक्तं मिथ्यात्व-रागादिविभावपरिणामं । तत्तो सिलिसदि कम्मं ततः परिणामात् श्लिष्यति बध्नाति । किम् । कर्म । यदिपुनर्निर्मलविवेकज्योतिःपरिणामेन परिणमति तदा तु कर्म मुञ्चति । तम्हा कम्मं तु परिणामो तस्मात् कर्मतु परिणामः । यस्माद्रागादिपरिणामेन कर्म बध्नाति, तस्माद्रागादिविकल्परूपो भावकर्मस्थानीयःसरागपरिणाम एव कर्मकारणत्वादुपचारेण कर्मेति भण्यते । ततः स्थितं रागादिपरिणामः कर्मबन्ध-कारणमिति ॥१३१॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[आदा] निर्दोषी परमात्मा निश्चय से शुद्ध-बुद्ध एक स्वभावी होने पर भी व्यवहार से अनादि कर्म बंध के वश [कम्ममलिमसो] कर्म से मलिन है । कर्म से मलिन होने पर वह क्या करता है? [परिणामं लहदि] परिणाम को प्राप्त करता है । कैसे परिणाम को प्राप्त करता है? [कम्मसंजुत्तं] कर्म रहित परमात्मा से विपरीत कर्म सहित मिथ्यात्व रागादि विभाव परिणाम को प्राप्त करता है । [तत्तो सिलिसदि कम्मं] उस परिणाम से बँधते हैं । उस परिणाम से क्या बैंधते हैं? उससे कर्म बँधते हैं । और यदि निर्मल भेदज्ञान ज्योति रूप परिणाम से परिणमन करता है, तब कर्म छूट जाते हैं । क्योंकि रागादि परिणाम से कर्म बँधते हैं इसलिये रागादि विकल्प रूप भावकर्म के स्थानीय सराग परिणाम ही कर्म के कारण होने से उपचार से कर्म कहलाते हैं ।
इससे निश्चित हुआ कि रागादि परिणाम कर्म-बंध के कारण हैं ॥१३१॥