कविवर श्री भूधरदासजी कृत भजन
From जैनकोष
- लगी लो नाभिनंदनसों
- भगवन्त भजन क्यों भूला रे
- जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि
- मेरे मन सूवा, जिनपद पींजरे वसि, यार लाव न बार रे
- अरे! हाँ चेतो रे भाई
- जपि माला जिनवर नामकी
- थाँकी कथनी म्हानै
- भवि देखि छबी भगवान की
- जिनराज चरन मन मति बिसरै
- जिनराज ना विसारो, मति जन्म वादि हारो
- पुलकन्त नयन चकोर पक्षी
- नैननि को वान परी, दरसन की
- प्रभु गुन गाय रै, यह औसर फेर न पाय रे
- सुन ज्ञानी प्राणी, श्री गुरु सीख सयानी
- वे मुनिवर कब मिलि है उपगारी
- सो गुरुदेव हमारा है साधो
- अब पूरी कर नींदड़ी, सुन जिया रे! चिरकाल
- भलो चेत्यो वीर नर तू, भलो चेत्यो वीर
- देखो भाई! आतमदेव बिराजै
- अन्तर उज्जवल करना रे भाई!
- अब मेरे समकित सावन आयो
- सुनि ठगनी माया, तैं सब जग ठग खाया
- अज्ञानी पाप धतूरा न बोय
- ऐसी समझके सिर धूल
- चित्त! चेतनकी यह विरियां रे
- गरव नहिं कीजै रे, ऐ नर
- निपट गंवार बीरा! थारी बान बुरी परी रे, बरज्यो मानत नाहिं
- मन हंस! हमारी लै शिक्षा हितकारी!
- सो मत सांचो है मन मेरे
- मन मूरख पंथी, उस मारग मति जाय रे
- सब विधि करन उतावला, सुमरनकौं सीरा
- आयो रे बुढ़ापो मानी, सुधि बुधि बिसरानी
- चरखा चलता नाहीं (रे) चरखा हुआ पुराना (वे)
- काया गागरि, जोझरी, तुम देखो चतुर विचार हो
- गाफिल हुवा कहाँ तू डोले, दिन जाते तेरे भरती में
- जगत जन जूवा हारि चले
- जग में श्रद्धानी जीव जीवन मुकत हैंगे
- वे कोई अजब तमासा, देख्या बीच जहान वे, जोर तमासा सुपनेका-सा
- सुनि सुजान! पाँचों रिपु वश करि
- अहो दोऊ रंग भरे खेलत होरी
- होरी खेलौंगी, घर आये चिदानंद कन्त