Category:प्रथमानुयोग
From जैनकोष
प्रथमानुयोग का लक्षण
रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 43 प्रथमानुयोगमर्थाख्यानं चरितं पुराणमपि पुण्यम्। बोधिसमाधिनिधानं बोधातिबोधः समीचीनः ॥43॥
= सम्यग्ज्ञान है सो परमार्थ विषय का अथवा धर्म, अर्थ, काम मोक्ष का अथवा एक पुरुष के आश्रय कथा का अथवा त्रेसठ पुरुषों के चरित्र का अथवा पुण्य का अथवा रत्नत्रय और ध्यान का है कथन जिसमें सो प्रथमानुयोग रूप शास्त्र जानना चाहिए।
( अनगार धर्मामृत अधिकार 3/9/258)।
हरिवंश पुराण सर्ग 10/71 पदैः पंचसहस्रैस्तु प्रयुक्ते प्रथमे पुनः। अनुयोगे पुराणार्थस्त्रिषष्टिरुपवर्ण्यते ॥71॥
= दृष्टिवाद के तीसरे भेद अनुयोगमें पाँच हजार पद हैं तथा इसके अवांतर भेद प्रथमानुयोगमें त्रेसठ शलाका पुरुषों के पुराण का वर्णन है ॥71॥
( कषायपाहुड़ पुस्तक 1/103/138) ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या./361-362/773/3) ( द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 42/182/8) (पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / गाथा 173/254/15)।
धवला पुस्तक 2/1,1,2/1,1,2/4 पढमाणियोगो पंचसहस्सपदेहि पुराणं वण्णेदि।
= प्रथमानुयोग अर्थाधिकार पाँच हजार पदों के द्वारा पुराणों का वर्णन करता है।
Pages in category "प्रथमानुयोग"
The following 200 pages are in this category, out of 5,090 total.
(previous page) (next page)व
- वाराही
- वारिषेण
- वारिषेणा
- वारुण
- वार्ष्णेय
- वाल्हीक
- वासवंत
- वासवकेतु
- वासवीर्य
- वासुदेव
- वासुपूज्य
- वासुवेग
- वास्तुविद्या
- वाहन
- वाहिनी
- विंदु
- विंदुसार
- विंध्य
- विंध्यकेतु
- विंध्यध्वत
- विंध्यपुर
- विंध्यपुरी
- विंध्यशक्ति
- विंध्यश्री
- विंध्यसेन
- विंध्यसेना
- विकचा
- विकर्ण
- विकसित
- विघट
- विघटोदर
- विघ्न
- विघ्नविनायक
- विघ्नसूदन
- विचल-
- विचित्रगुप्त
- विचित्रचूल
- विचित्रभानु
- विचित्रमति
- विचित्रमाला
- विचित्ररथ
- विचित्रवाहन
- विचित्रवीर्य
- विचित्रांगद
- विचेतस्
- विच्छेदिनी
- विजय
- विजयखेट
- विजयगिरि
- विजयगुप्त
- विजयघोष
- विजयचरी
- विजयच्छंद
- विजयदेव
- विजयनंदन
- विजयनगर
- विजयपर्वत
- विजयपुर
- विजयपुरी
- विजयभद्र
- विजयमति
- विजयमित्र
- विजयराम
- विजयशार्दूल
- विजयश्री
- विजयश्रुति
- विजयसिंह
- विजयसुंदरी
- विजयसेन
- विजयसेना
- विजयस्यंदन
- विजया
- विजयापुरी
- विजयार्ध
- विजयार्धकुमार
- विजयावती
- विजयावली
- विजयावह
- विजयावान्
- विजयाश्रिता
- विटप
- वितत
- वितता
- वितस्ता
- वितापि
- विद
- विदग्धनगर
- विदग्धा
- विदर्भ
- विदर्भपुर
- विदर्भा
- विदुर
- विदुरथ
- विदेहा
- विद्या
- विद्यांग
- विद्याकोश
- विद्याकौशिक
- विद्याधर
- विद्याधरवंश
- विद्यामंदिर
- विद्यासमुद्धात
- विद्युच्चर
- विद्युच्चोर
- विद्युज्जिह्व
- विद्युत्कर्ण
- विद्युत्कांत
- विद्युत्केतु
- विद्युत्केश
- विद्युत्प्रकाशा
- विद्युत्प्रभ
- विद्युत्प्रभा
- विद्युत्वान्
- विद्युदंबुक
- विद्युदाभ
- विद्युद्गति
- विद्युद्घन
- विद्युद्दंग
- विद्युद्दंष्ट्र
- विद्युद्द्रंष्ट
- विद्युद्राज
- विद्युद्वक्त्रा
- विद्युद्वाह
- विद्युद्वाहन
- विद्युद्विलसित
- विद्युद्वेग
- विद्युद्वेगा
- विद्युन्मती
- विद्युन्माला
- विद्युन्माली
- विद्युन्मुख
- विद्युल्लता
- विद्युल्लेखा
- विद्रावण
- विद्रुम
- विधाता
- विधि
- विधिदान
- विनमि
- विनय लालसा
- विनयंधर
- विनयचरी
- विनयचारी
- विनयदत्त
- विनयधर
- विनयपुरो
- विनयवती
- विनयविजय
- विनयविलास
- विनयश्री
- विनयसेन
- विनया
- विनिहात्र
- विनीत
- विनीता
- विनीद
- विपर्यय
- विपलोदरी
- विपाटिनी
- विपुल
- विपुलख्याति
- विपुलगिरि
- विपुलमति
- विपुलवाहन
- विपुला
- विपुलाचल
- विपृथु
- विप्रयोदि
- विभव
- विभीषण
- विभु
- विभ्रम
- विमल
- विमल सूरि
- विमलकांतार
- विमलकीर्ति
- विमलदास
- विमलनाथ
- विमलपुर
- विमलप्रभ
- विमलप्रभा
- विमलमति
- विमलमती
- विमलमेघ
- विमलवति
- विमलवाह
- विमलवाहन
- विमलश्री
- विमलसुंदरी
- विमलसेन
- विमलसेना
- विमला
- विमलाभा
- विमलेश्वर
- विमान पंक्तिव्रत
- विमुचि
- वियोनिक
- विरजा
- विरलवेगिका
- विरस