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- निजहितकारज करना भाई!
- नित उठ ध्याऊँ, गुण गाऊँ, परम दिगम्बर साधु
- नित पीज्यौ धीधारी, जिनवानि
- निपट अयाना, तैं आपा नहीं जाना
- निपट गंवार बीरा! थारी बान बुरी परी रे, बरज्यो मानत नाहिं
- नियमसार प्रवचन - भाग 2 पूर्ण
- निरखत जिनचन्द्र-वदन
- निरखत सुख पायौ जिन मुखचन्द
- निरखी निरखी मनहर मूरत
- निरविकलप जोति प्रकाश रही
- नैननि को वान परी, दरसन की
- पंचाध्यायी प्रवचन
- पंडित राजेंद्रजी, जबलपुर
- पद्मसद्म पद्मापद पद्मा
- परनति सब जीवनकी
- परम दिगम्बर यती, महागुण व्रती, करो निस्तारा
- परमगुरु बरसत ज्ञान झरी
- परमाथ पंथ सदा पकरौ
- परीक्षामुखसूत्र प्रवचन
- परीक्षामुखसूर प्रवचन
- पर्वराज पर्यूषण आया दस धर्मो की ले माला
- पल पल बीते उमरिया रूप जवानी जाती
- पायो जी सुख आतम लखकै
- पिया बिन कैसे खेलौं होरी
- पुलकन्त नयन चकोर पक्षी
- प्यारी लागै म्हाने जिन छवि थारी
- प्रभु! तुम नैनन-गोचर नाहीं
- प्रभु गुन गाय रै, यह औसर फेर न पाय रे
- प्रभु तुम सुमरन ही में तारे
- प्रभु तेरी महिमा किहि मुख गावैं
- प्रभु थारी आज महिमा जानी
- प्रभु दर्शन कर जीवन की, भीड़ भगी मेरे कर्मन की
- प्रवचनसार प्रवचन
- प्राणी! आतमरूप अनूप है, परतैं भिन्न त्रिकाल
- प्राणी! सोऽहं सोऽहं ध्याय हो
- प्राणी लाल! छांडो मन चपलाई
- प्राणी लाल! धरम अगाऊ धारौ
- प्रानी समकित ही शिवपंथा
- प्रेम अब त्यागहु पुद्गल का
- बन्यौ म्हांरै या घरीमैं रंग
- बाबा मैं न काहूका
- बीतत ये दिन नीके, हमको
- बुधजन पक्षपात तज देखो
- बुधजनजी
- बोधपाहुड गाथा 1
- बोधपाहुड गाथा 10
- बोधपाहुड गाथा 11
- बोधपाहुड गाथा 12
- बोधपाहुड गाथा 14
- बोधपाहुड गाथा 15