कविवर श्री भागचन्दजी कृत भजन
From जैनकोष
- सन्त निरन्तर चिन्तत ऐसैं
- सुमर सदा मन आतमराम
- आतम अनुभव आवै जब निज
- आतम अनुभव आवै जब निज
- ऐसे विमल भाव जब पावै
- आकुलरहित होय इमि निशदिन
- सफल है धन्य धन्य वा घरी
- प्रानी समकित ही शिवपंथा
- जीवन के परिनामनिकी यह
- परनति सब जीवनकी
- तू स्वरूप जाने बिना दुखी
- सत्ता रंगभूमिमें, नटत ब्रह्म नटराय
- सांची तो गंगा यह वीतरागवानी
- महिमा है अगम जिनागमकी
- महिमा जिनमतकी
- थांकी तो वानी में हो
- मेघघटासम श्रीजिनवानी
- म्हांकै घट जिनधुनि अब प्रगटी
- अहो यह उपदेशमाहीं
- धन्य धन्य है घड़ी आजकी
- जानके सुज्ञानी जैनवानी की सरधा लाइये
- श्रीगुरु हैं उपगारी ऐसे वीतराग गुनधारी वे
- धन धन जैनी साधु अबाधित
- शांति वरन मुनिराई वर लखि
- श्रीमुनि राजत समता संग
- ऐसे जैनी मुनिमहाराज
- सम आराम विहारी
- ऐसे साधु सुगुरु कब मिल हैं
- गिरिवनवासी मुनिराज
- जे दिन तुम विवेक बिन खोये
- अरे हो अज्ञानी तूने कठिन मनुषभव पायो
- तेरे ज्ञानावरन दा परदा
- जीव! तू भ्रमत सदीव अकेला
- चेतन निज भ्रमतैं भ्रमत रहै
- सारौ दिन निरफल खोयबौ करै छै
- निज कारज काहे न सारै रे
- हरी तेरी मति नर कौनें हरी
- आवै न भोगनमें तोहि गिलान
- मान न कीजिये हो परवीन
- प्रेम अब त्यागहु पुद्गल का
- यह मोह उदय दुख पावै
- करौ रे भाई, तत्त्वारथ सरधान
- धनि ते प्रानि, जिनके तत्त्वारथ श्रद्धान
- जिन स्वपरहिताहित चीन्हा
- यही इक धर्ममूल है मीता!
- बुधजन पक्षपात तज देखो
- अरे हो जियरा धर्म में चित्त लगाय रे
- भववनमें, नहीं भूलिये भाई!
- अति संक्लेश विशुद्ध शुद्ध पुनि
- जे सहज होरी के खिलारी
- सहज अबाध समाध धाम तहाँ
- सुन्दर दशलक्षन वृष
- षोडशकारन सुहृदय