Category:चरणानुयोग
From जैनकोष
चरणानुयोग का लक्षण
रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 45 गृहमेध्यनगाराणां चारित्रोत्पत्तिवृद्धिरक्षांगम्। चरणानुयोगसमयं सम्यग्ज्ञानं विजानाति ॥45॥
= सम्यग्ज्ञान ही गृहस्थ और मुनियों के चारित्र की उत्पत्ति, वृद्धि, रक्षा के अंगभूत चरणानुयोग शास्त्र को विशेष प्रकार से जानता है।
( अनगार धर्मामृत अधिकार 3/11/261)।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 42/182/9 उपासकाध्ययनादौ श्रावकधर्मम्, आचाराराधनौ यतिधर्मं च यत्र मुख्यत्वेन कथयति स चरणानुयोगो भण्यते।
= उपासकाध्ययन आदिमें श्रावक का धर्म और मूलाचार, भगवती आराधना आदि में यति का धर्म जहाँ मुख्यता से कहा गया है, वह दूसरा चरणानुयोग कहा जाता है।
(पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / गाथा 173/254/16)।
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